पदक जीता और पिता को खो दिया लेकिन कुछ ऐसा रहा देश के पहले गोल्ड तक का सफर
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पदक जीता और पिता को खो दिया लेकिन कुछ ऐसा रहा देश के पहले गोल्ड तक का सफर

सुधीर ने इंग्लैंड के बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को पैरा पावरलिफ्टिंग में गोल्ड दिलाया है. सुधीर को मिले गोल्ड ने देशवासियों को सोने का तगमा दिया है क्योंकी भारत को पैरा पावरलिफ्टिंग खेल में आज तक का पहला पदक मिला है.

गोल्ड जीतने के बाद कोच के साथ सुधीर

Commonwealth Games 2022: किसी ने बिल्कुल सटीक कहा है मुसीबतें लाख आये राहों में, तू हौसला रख सुना है कभी अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया. जिंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जो इंसान अपने आप पर यकीं रख कर आगे बढ़ता है, वो मंजिल को कुछ देर से ही सही लेकिन हासिल कर ही लेता है. कुछ ऐसी ही कहानी है हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले पावरलिफ्टर सुधीर की. वही सुधीर जिस पर आज पूरे देश को गर्व है. सुधीर ने इंग्लैंड के बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को पैरा पावरलिफ्टिंग में गोल्ड दिलाया है. सुधीर को मिले गोल्ड ने देशवासियों को सोने का तगमा दिया है क्योंकी भारत को पैरा पावरलिफ्टिंग खेल में आज तक का पहला पदक मिला है. इस ऐतिहासिक उपलब्धि से सुधीर बेहद खुश हैं लेकिन उनकी इस खुशी के पिछे एक बड़ा गम भी छुपा है, लेकिन इस गम ने उन्हें कमजोर नहीं किया,  सुधीर की तकलीफ ही उनकी हिम्मत बन गयी. सुधीर ने अपने पहले प्रयास में 208 किलो की लिफ्ट और दूसरे प्रयास में 212 किलो की रिकॉर्ड लिफ्ट कर 134.5 अंकों के साथ रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करते हुए देश की झोली में गोल्ड डाला है.

पदक जीता और पिता को खो दिया

सुधीर ने जिस दिन एशियाई खेलों में 2018 में पदक जीता, उसी दिन उनके पिता का निधन हो गया. उनके पिता का ऐसे पल में उनका साथ छोड़ के दुनियां से रुखसत हो जाना सुधीर के लिए बहुत बड़ा सदमा था. सुधीर कहते है कि मैंने टोक्यो पैरालंपिक के लिए जमकर तैयारी की थी, लेकिन कोरोना की वजह से शिरकत नहीं कर सका और फिर अपने पिता को भी मैंने खो दिया था. ये दोनों ही घटनाएं बहुत बड़ा सदमा थी. कामनवेल्थ खेलों का यह गोल्ड सुधीर ने अपने पिता को समर्पित किया है.

पावरलिफ्टिंग से पैरा पावरलिफ्टर तक का सफर

सुधीर पोलियों से ग्रस्त है लेकिन अपने शरीर की कमी को उन्होंने अपने हौसलों पर भरी कभी नहीं पड़ने दिया. वो अपने आप को बेहतर बनाने में जुट गए, जिसका नतीजा आज पूरे देश की सामने है. साल 2013 की बात है सुधीर का वजन कुछ बढ़ सा गया था, जिसके बाद उन्होंने अपने शरीर पर ध्यान दिया और अपनी शरीरिक क्षमता को बढ़ने के लिए जिम ज्वाइन किया. सुधीर ने अपने बचपन के दोस्त वीरेंद्र के साथ जिम करना शुरू किया. इस दौरान उनके दोस्त ने पावरलिफ्टिंग से उन्हें रूबरू करवाया और उसकी बेसिक जानकारी दी. इसके बाद सुधीर का इस खेल की तरफ  झुकाव बढ़ने लगा ओऔर उन्होंने धीरे-धीरे छोटी बड़ी प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया. पावर लिफ्टिंग ने उन्हें वह सब कुछ दिया है, जिसकी उन्हें चाह थी.

दिन रात की मेहनत आखिर रंग ले ही आई 

सुधीर ने पिता की मौत के सदमे से अपने आपको संभाला और दिन रात की मेहनत करके अपना सपना पूरा करने के लिए प्रैक्टिस पर लग गए. उनका कहना है कि मैं हैवीवेट का प्रतिस्पर्धी था जो 87.3 किलो वर्ग में खेल रहा था. अपनी प्रैक्टिस पर पूरा भरोसा था, जानता था कि कॉमनवेल्थ में अच्छा प्रदर्शन करूंगा और जिस वक्त मैं अपने अटैंप्ट ले रहा था, उस वक्त मेरा ध्यान केवल अच्छे प्रदर्शन पर था. मुझे मालूम था कि प्रदर्शन बेहतर होगा, तो मेडल मिलना ही है. शुरूआत में सुधीर का 217 किलो की लिफ्ट का एक प्रयास विफल हो गया, लेकिन इसके बावजूद वह अपने दोनों प्रयासों में रिकॉर्ड पावरलिफ्टिंग कर, गोल्ड मेडल हासिल करने में कामयाब हो गये.

गोल्ड मेडल ने पदक की भूख को और बढ़ा दिया 

सुधीर को यही नहीं रुकना है कॉमनवेल्थ में मिले गोल्ड ने सुधीर को उत्साहित तो किया ही साथ ही गोल्ड मिलने की चाह को और बढ़ा दिया. सुधीर ने जीत के बाद कहा कि कॉमनवेल्थ के गोल्ड ने सोने के पदक की भूख को और बढ़ा दिया है. अभी तक मैं चार घंटे प्रैक्टिस कर रहा था, लेकिन इस जीत के बाद, इस वक्त को थोड़ा और बढ़ाना होगा. सुधीर साफ कहते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं रह जाता. 

अगला निशाना ओलंपिक मेडल

सुधीर को यही नहीं रुकना है उनका अगला लक्ष्य ओलम्पिक में देश को गोल्ड दिलाना है. जिसकी तैयारी उन्होंने शुरू कर दी है. सुधीर कहते है कि मेरा सपना ओलंपिक मेडल हासिल करना है. अब अगला निशाना करीब दो वर्ष बाद, यानी 2024 में होने वाले पेरिस पैरालंपिक और ह्वांगझू एशियाई खेल है. सुधीर इन दोनों इवेंट्स के लिए क्वालीफाई भी कर चुके है.

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शिष्य से ज्यादा गुरु को हुई ख़ुशी 

जिस समय पैरा पावरलिफ्टर सुधीर के कॉमनवेल्थ में पैरा पावरलिफ्टिंग में गोल्ड जीतने की घोषणा हुई, उस समय सबसे अधिक खुश उनके कोच विजय मुनीश्वर नज़र आ रहे थे. द्रोणाचार्य अवॉर्ड प्राप्त मुनीश्वर को अपने ‘शेर’ पर गर्व है. विजय मुनीश्वर सन् 1992, 1996 एवं सन् 2000 में पैरालंपिक में शिरकत कर चुके हैं. वर्तमान में वे सुधीर सहित कई पैरा खिलाडियों को प्रशिक्षण दे रहे है. विजय मुनीश्वर का मानना है की शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य का मजबूत होना बेहद आवश्यक है. कॉम्पटीशन का लेवल जितना बड़ा हो, खिलाड़ी को उतना ही मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए. सुधीर ने भी इसी मंत्र को फॉलो करते हुए भारत के लिए पहली बार पैरा पावरलिफ्टिंग में पहला गोल्ड हासिल किया.

सुधीर चाहते हैं कि पावर लिफ्टिंग में अधिक से अधिक युवा आगे आएं, लेकिन उनका युवाओं को एक साफ संदेश है. उनका कहना है कि युवा अधिक से अधिक प्रैक्टिस करें, लेकिन सप्लीमेंट्स कम से कम इस्तेमाल करें. वे इस बात से चिंतित हैं कि आजकल युवा जिम जाते हैं, तो शरीर की शेप के लिए बजाय अच्छी डाइट के सप्लीमेंट्स पर निर्भर हो जाते हैं.सुधीर का  युवाओं को सन्देश है की अपनी शारीरिक क्षमताओं पर यकीन करें और जीवन में लक्ष्य निर्धारित कर उसके लिए प्रयासरत रहें. सुधीर की सफलता हमें सिखाती है की अगर कुछ ठान लिया जाए और उसे पाने के लिए मेहनत की जाए तो लक्ष्य को पाने से कोई नहीं रोक सकता.  

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