कोर्ट ने कहा कि महिला के पास जो आधार कार्ड हैं, उनमें से एक पर उसकी जन्मतिथि 1-1-1998 लिखी हुई है, जिससे यह पता चलता है कि आरोपी और पीड़िता के बीच जब आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बने उस वक्त पीड़िता नाबालिग नहीं थी.
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नई दिल्लीः आपसी सहमति से सेक्स के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अहम टिप्पणी की है. दरअसल कोर्ट ने कहा है कि यदि दो लोग आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बना रहे हैं तो उन्हें एक दूसरे का आधार कार्ड (Aadhar Crad) या पैन कार्ड देखने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने यह टिप्पणी कर रेप के आरोपी को जमानत दे दी.
क्या है मामला
दरअसल एक महिला ने रेप का केस लगाकर व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. पीड़िता ने शिकायत में ये भी कहा कि जब दोनों के बीच पहली बार शारीरिक संबंध बने थे, उस वक्त वह नाबालिग थी. जिसके बाद पुलिस ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया. इस पर आरोपी की जमानत का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया.
कोर्ट ने पाया कि पीड़ित महिला के बयानों में विरोधाभास है.साथ ही आरोपी के वकील ने कोर्ट में बताया कि महिला ने 3 आधार कार्ड बनवाए हुए हैं और तीनों में जन्म की तारीख और साल अलग-अलग हैं. आरोपी के वकील के अनुसार, महिला ने आरोपी व्यक्ति को हनीट्रैप में फंसाने के लिए वो वाला आधार कार्ड पुलिस को दिखाया, जिसके आधार पर आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट लग सके.
कोर्ट ने कहा कि महिला के पास जो आधार कार्ड हैं, उनमें से एक पर उसकी जन्मतिथि 1-1-1998 लिखी हुई है, जिससे यह पता चलता है कि आरोपी और पीड़िता के बीच जब आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बने उस वक्त पीड़िता नाबालिग नहीं थी. कोर्ट ने यह भी पाया कि पीड़िता के बैंक खाते में बड़ी रकम जमा की गई है, जिससे यह मामला हनीट्रैप का भी हो सकता है. साथ ही कोर्ट ने इस पर भी सवाल खड़े किए कि पीड़िता ने मामले में एफआईआर कई महीने की देरी से दर्ज क्यों कराई?
यही वजह है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को मामले की विस्तार से जांच करने के निर्देश भी दिए हैं. कोर्ट ने पुलिस को यह भी पता लगाने के को कहा है कि महिला ने क्या इससे पहले किसी और के खिलाफ भी ऐसी ही शिकायत की है. कोर्ट ने महिला के आधार कार्ड की भी जांच करने को कहा है.