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भूत का मुखौटा पहनकर 100 बकरों की बलि! महिलाएं करती हैं अजीबोगरीब हरकतें, आखिर क्या है मान्यता

CG News: छत्तीसगढ़ का कोरबा अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है. वहीं दूसरी ओर इस जगह पर कुछ ऐसी गतिविधियां भी होती हैं जिन्हें आप अंधविश्वास कहें या आस्था, ये आप पर निर्भर करता है. इस जिले में एक सदियों पुरानी परंपरा निभाई जाती है जिसमें ग्रामीण अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए 100 से ज्यादा बकरों की बलि देते हैं. बलि का तरीका इतना अजीब है कि आप सोच में पड़ जाएंगे.

 

छत्तीसगढ़ की परंपराएं

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छत्तीसगढ़ की परंपराएं

छत्तीसगढ़ राज्य अपनी पुरानी परंपराओं को आज भी जीवित रखने के लिए जाना जाता है. इसकी सदियों पुरानी परंपराएं इसकी सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती हैं.

 

डरावनी और अजीब परंपरा

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डरावनी और अजीब परंपरा

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के एक गांव में एक पुरानी परंपरा निभाई जाती है. सुनने में यह परंपरा नई नहीं लगती लेकिन इनका तरीका बहुत ही डरावना और अजीब है.

 

100 से अधिक बकरों की बलि

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100 से अधिक बकरों की बलि

कोरबा जिले के एक गांव में इष्टदेव को प्रसन्न करने के लिए 100 से ज्यादा बकरों की बलि दी जाती है. हमारे हिंदू धर्म में बकरों की बलि देने की परंपरा सालों से चली आ रही है, लेकिन इन परंपराओं को निभाने का तरीका इतना अजीब है कि मन में एक ही सवाल आता है - क्या हम इसे अंधविश्वास कहें या लोगों की आस्था?

 

गांव और इष्टदेव

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गांव और इष्टदेव

गांव के लोगों का कहना है कि अगर इष्टदेव नाराज हो गए तो गांव में बड़ी आपदा आने की आशंका है. गांव को देवता के प्रकोप से बचाने के लिए यहां 100 से ज्यादा बकरों की बलि देने की प्रथा है. 

 

भटगांव के आदिवासी ग्रामीण

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भटगांव के आदिवासी ग्रामीण

कोरबा ब्लॉक के भटगांव के आदिवासी ग्रामीणों का कहना है कि एक समय ऐसा था जब गांव में हैजा या किसी आपदा के कारण इंसानों के साथ-साथ जानवर भी मर जाते थे, जिसके कारण स्थानीय आदिवासी ग्रामीण पलायन कर जाते थे. आज भी ग्रामीणों की आंखों में यह भयावह दृश्य कैद है.

 

ऊपरी दैवीय शक्ति का प्रकोप

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ऊपरी दैवीय शक्ति का प्रकोप

गांव वालों का मानना है कि उनके गांव  पर किसी ऊपरी दैवीय शक्ति का प्रकोप है जिसके वजह से उनके गांव में अकाल पड़ता है. गांव को इन बुरी शक्तियों से बचाने के लिए ठाकुर देवता और बार देवी गांव की सुरक्षा करते हैं. 

 

कैसे निभाई जाती है परंपरा

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कैसे निभाई जाती है परंपरा

बताते है कि इन देवी-देवताओं को खुश रखने के लिए हर सात साल में 12 दिनों तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है. कुंवारी लड़कियां देवी देवताओं की प्रतिमा सिर पर उठाकर गांव का घूमती हैं, महिलाएं अजीबोगरीब हरकतें करती हैं, और लोग भूत-प्रेत के मुखौटे पहनकर मंदिर की छत पर झूमते हैं.पूजा- पाठ के आखरी दिन इसी जगह पर बकरे की बलि दी जाती है और गांव के मंगल कामना की प्रथना की जाती है.