छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला किया है. जिसमे कहां है कि किसी भी नागरिक को व्यापार करने से रोकना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है.
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बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला किया है. जिसमे कहां है कि किसी भी नागरिक को व्यापार करने से रोकना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है. हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक तिवारी की डिवीजन बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहां की राज्य सरकार किसी भी नागरिक को समानता के अधिकार से भी वंचित नहीं कर सकती.
दरअसल, जगदलपुर के छह बस संचालकों को परिवहन विभाग पिछले तीन साल से बसों का परमिट जारी नहीं कर रहा था. इसके खिलाफ उन्हें हाईकोर्ट में आना पड़ा. वहीं, परिवहन विभाग अपने ही अधिकरण और हाईकोर्ट के फैसले को भी नहीं मान रही थी, जिस पर डिवीजन बेंच ने एक सप्ताह के भीतर परमिट जारी नहीं करने पर संबंधित अफसरों के सर्विस रिकार्ड (CR) में प्रकरण दर्ज करने का आदेश दिया है.
जगदलपुर की मीनू मिश्रा, आनंद मिश्रा, संदीप मिश्रा, अनूप तिवारी बस संचालक हैं. उन्हें 19 दिसंबर 2019 को क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी के समक्ष जगदलपुर से भेजी, जगदलपुर से कोंटा, जगदलपुर से उसूर, जगदलपुर से जगरगुंडा तक बस चलाने के लिए छह परमिट के लिए आवेदन किया था. तत्कालीन क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी ने उनके छह परमिट के साथ ही करीब 50 से अधिक बस संचालकों को परमिट स्वीकृत किया. लेकिन, उन्हें परमिट जारी नहीं किया. जबकि बाकी सभी को परमिट जारी कर दिया. इस पर उन्होंने परिवहन विभाग में शिकायत की. कोई कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण में अपील कर दी.
उनकी अपील पर क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण ने 20 दिसंबर 2021 को बस संचालकों के पक्ष में फैसला दिया. साथ ही क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को एक सप्ताह के भीतर परमिट जारी करने का आदेश दिया. लेकिन, परिवहन विभाग के प्राधिकरण के फैसले को नहीं माना. खास बात यह है कि अपील में परिवहन अधिकारी टोपेश्वर वर्मा और संयुक्त सचिव गोपीचंद मेश्राम ने अपने शपथ पत्र में स्वीकार किया था कि परमिट के लिए कोई रोक नहीं लगा है. इसके बाद भी परिवहन विभाग ने प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर दी. परिवहन विभाग ने प्राधिकरण के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी. जिसकी सुनवाई जस्टिस टीपी शर्मा की कोर्ट में हुई.
उन्होंने सभी पक्षों को सुनने के बाद परिवहन विभाग की अपील को खारिज करते हुए बस संचालकों के पक्ष में आदेश जारी किया था. हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के इस फैसले के खिलाफ परिवहन विभाग ने डिवीजन बेंच में अपील की. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील शिवेश सिंह ने तर्क दिया कि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी के पक्षपात पूर्ण रवैए से बस संचालक तीन साल से परमिट के लिए भटक रहे हैं. विभाग का यह रवैया संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए मौलिक और समानता के अधिकारों का हनन है. राज्य परिवहन अधिकरण में जिला जज के समकक्ष जज ने फैसला दिया है.
वहीं हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने भी फैसले को सही ठहराया है. इसके बाद भी आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है. कोर्ट को यह भी बताया गया कि किसी भी नागरिक को व्यापार से वंचित नहीं किया जा सकता. सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक तिवारी ने परिवहन विभाग के अफसरों पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. डिवीजन बेंच ने कहा कि राज्य सरकार किसी भी नागरिक को उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकती. न ही किसी नागरिक को व्यापार करने से रोक सकती है. डिवीजन बेंच ने एक सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को परमिट जारी करने का आदेश दिया है. अगर एक सप्ताह के भीतर परमिट जारी नहीं किया तो संबंधित अफसर के सर्विस रिकार्ड में केस दर्ज करने का आदेश दिया है.