Nitish Kumar Politics: कहीं ऐसा तो नहीं कि कयासबाजी को हवा देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगला 5 साल मुख्यमंत्री पद के लिए फिक्स कर लेना चाहते हैं. केंद्र में बहुमत का न होना और नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरों का आना... बिहार के मुख्यमंत्री गजब के 'चाणक्य' हैं.
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शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा, कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा. कैफी आजमी की ये लाइनें बिहार की अभी की राजनीति को समझने के लिए काफी है. दिसंबर के ठंड में बिहार की राजनीति गरमाई है. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर निकले हैं तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव उन पर लगातार हमलावर हैं. दिल्ली और मुंबई में भी कुछ ऐसा हुआ है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गंभीर होना पड़ा है. दरअसल, नीतीश कुमार बोलते रहते हैं तो सब कुछ नॉर्मल माना जाता है लेकिन जब वे लंबे समय के लिए चुप होते हैं तो जानकार इसे टर्निंग प्वाइंट मानकर अपने हिसाब से उसका आकलन करने लगते हैं. वैसे तो बिहार की राजनीति कभी ठहरी नहीं रहती, लेकिन उसमें किसी ने कंकड़ मारकर थोड़ा और हिलोरें पैदा जरूर कर रहा है. चर्चा तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से संबंधों को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं. हालांकि जेडीयू के 2 बड़े नेता पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा दिल्ली में भाजपा आलाकमान के साथ काफी सहज स्थिति में दिखते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि इन कयासबाजियों का आधार क्या है?
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नीतीश कुमार को लेकर ऐसी अटकलबाजियों का बाजार तब से गर्म होना शुरू हुआ, जब महाराष्ट्र में भाजपा ने एकनाथ शिंदे के बदले देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री बनाया. विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने महाराष्ट्र के बाद बिहार को लेकर ऐसी आशंकाएं जतानी शुरू कर दीं और नीतीश कुमार को एक तरह से चेताने लगे कि अभी से संभल जाइए, नहीं तो अगला नंबर आपका है. दरअसल, महाराष्ट्र में भाजपा ने 130 से अधिक सीटें जीकर अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली और उसके बाद देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री की कुर्सी की ओर बढ़ते चले गए. अब विपक्षी दलों ने नीतीश कुमार को इसी बात को लेकर चेताया कि बिहार में भी अगर भाजपा को इस बार जेडीयू से ज्यादा नंबर आते हैं तो वहां भी फड़णवीस फॉर्मूले पर काम होगा. जानकारों के अनुसार, नीतीश कुमार की चिंता का सबसे बड़ा कारण यही है.
इस तरह की कयासबाजियों को हवा तब और ज्यादा मिली, जब एक कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह से बिहार की राजनीति को लेकर सवाल पूछे गए. अमित शाह ने कहा कि भाजपा संसदीय बोर्ड इस बारे में अंतिम फैसला लेगा और काफी कुछ नतीजों पर आधारित होगा. अमित शाह का यह बयान इसलिए चौंकाने वाला था, क्योंकि इससे पहले नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी. यह भी कहा जा रहा था कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता बने रहेंगे. अमित शाह के बयान से जेडीयू नेताओं में संशय पैदा हो न हो, राजनीतिक विश्लेषकों को एक मसाला जरूर दे दिया. हालांकि बिहार भाजपा की ओर से अमित शाह के बयान के बाद भी कहा गया कि नीतीश कुमार ही हमारे नेता होंगे.
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मामला तब और गंभीर हो गया, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशती मनाई जा रही थी. इस कार्यक्रम में बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने कहा, बिहार में भाजपा की अपनी सरकार हो, यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था और इसे पूरा किए बगैर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि नहीं हो सकती. हालांकि विजय कुमार सिन्हा ने इस पर अपनी सफाई भी दी और यह भी कहा कि विधानसभा चुनाव में हमारा नेतृत्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही करेंगे.
जेडीयू के नेताओं ने इस मुद्दे पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हैं. ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी में कुछ नेताओं को इस बात का शक है कि बीजेपी कहीं न कहीं अपने नेतृत्व को लेकर नए समीकरण तैयार कर रही है. आपको बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू को भारी नुकसान हुआ था और वह तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी. चुनाव में उसे केवल 45 सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन भाजपा ने 75 सीट होने के बाद भी मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार को दिया था.
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एनडीए की ओर से कहा गया था कि गठबंधन की पूर्व निर्धारित शर्तों के हिसाब से नीतीश कुमार को यह पद दिया गया है. अब महाराष्ट्र का फॉर्मूला एकदम से उलट है और यदि एनडीए को सत्ता मिलती है और भाजपा को ज्यादा सीटें आती हैं तो मुख्यमंत्री पद के लिए रार बढ़ सकती है. नीतीश कुमार शायद पाला बदल के बदले मुख्यमंत्री पद पर खुद को फिक्स करना चाहते हैं, शायद कयासबाजी को हवा इसलिए दी गई है.