बिहार में विवाह की व्यवस्था अन्य राज्यों से अलग नहीं है लेकिन यहां एक विवाह की पद्धति जो बहुत फेमस है और जिस पर बॉलीवुड में कुछ साल पीछे एक फिल्म का भी निर्माण हुआ था 'पकड़ौआ विवाह'. नाम सुनकर ही आप समझ गए होंगे, बंदूक की नोक पर या किसी भी तरह डरा-धमकाकर शादी करा देना.
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Bihar News: बिहार में विवाह की व्यवस्था अन्य राज्यों से अलग नहीं है लेकिन यहां एक विवाह की पद्धति जो बहुत फेमस है और जिस पर बॉलीवुड में कुछ साल पीछे एक फिल्म का भी निर्माण हुआ था 'पकड़ौआ विवाह'. नाम सुनकर ही आप समझ गए होंगे, बंदूक की नोक पर या किसी भी तरह डरा-धमकाकर शादी करा देना. बिहार में य व्यवस्था आम हो गई थी. इसमें समाज के दबाव में आकर आखिर शादी को मानने के लिए लड़के और लड़की दोनों पक्ष के लोग मजबूर हो जाते थे लेकिन पटना हाई कोर्ट के एक फैसले ने इस विवाह की व्यवस्था को ही अवैध करार दे दिया है.
पटना हाईकोर्ट की तरफ से 10 साल पुराने एक 'पकड़ौआ विवाह' के मामले में अहम फैसला सुनाया गया है. अदालत ने अपने फैसले में साफ कह दिया है जबरन कराई जाने वाली शादी को मान्यत नहीं मिलेगी मतलब ऐसी शादी अवैध होगी. अदालत की तरफ से इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा गया कि जबरदस्ती ताकत या हथियार के बल पर डर दिखाकर किसी की मांग भरवा देना शादी नहीं हो सकती है. क्योंकि शादी के लिए दोनों पक्षों खासकर लड़की और लड़के की रजामंदी अनिवार्य है.
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अदालत ने लखीसराय में हुए 10 साल पहले एक 'पकड़ौआ विवाह' के मामले में फैसला सुनाते हुए यह कहा. इस मामले में एक आर्मी के जवान का बंदूक की नोंक पर जबरन शादी करवा दी गई थी. मामला नवादा जिले के रविकांत से जुड़ा हुआ है जो आर्मी में कार्यरत था और 10 साल पहले उसका 'पकड़ौआ विवाह' करवा दिया गया था. जब वह लखीसराय में एक मंदिर में दर्शन करने पहुंचा था. उसका अपहरण कर तब बंदूक की नोंक पर उसकी शादी करवाई गई थी. शादी की रस्में पूरी होने के बाद वह वहां से भाग निकला और ड्यूटी पर चला गया. वहां ड्यूटी से वापस आने के बाद उसने नवादा के फैमिली कोर्ट में लड़की के परिवार वालों के खिलाफ इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी.
हालांकि तब निचली अदालत से रविकांत की शादी को रद्द करने की याचिका खारिज हो गई थी तो उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसमें फैसला रविकांत के पक्ष में आया और पटना हाईकोर्ट ने इस शादी को रद्द करने का फैसला सुनाया.
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि सिर्फ मांग भरवा देने से शादी नहीं होती है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि हिंदू रीति-रिवाजों को पूरा करने के बाद ही शादी को मान्य माना जाता है. जबकि रविकांत के मामले में ऐसा नहीं हुआ था.