Muzaffarpur SHelter Home Case: एससी एसटी स्पेशल कोर्ट ने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में ब्रजेश ठाकुर, शाइस्ता प्रवीण और कृष्ण कुमार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. 2018 में जब इस मामले का खुलासा हुआ था, तब बिहार सरकार आलोचनाओं के केंद्र में आ गई थी.
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मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में कई लड़कियों से यौन उत्पीड़न के आरोपी ब्रजेश ठाकुर और उसके दो सहयोगियों को सबूतों के अभाव में विशेष ‘एससी-एसटी’ कोर्ट ने बरी कर दिया. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अजय कुमार मल्ल की एससी/एसटी अदालत ने लापता 11 महिलाओं और चार लड़कियों से संबंधित मामले में सबूतों के अभाव में ब्रजेश ठाकुर, शाइस्ता प्रवीण उर्फ मधु और कृष्ण कुमार को बरी कर दिया. हालांकि ठाकुर, शाइस्ता प्रवीण उर्फ मधु और कृष्ण कुमार जेल में ही रहेंगे, क्योंकि 2018 में देश की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली इस भीषण घटना से संबंधित अन्य मामलों में उन्हें 2020 में दिल्ली की एक अदालत ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
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मुजफ्फरपुर जिले के एक आश्रय गृह में 2018 में कई लड़कियों के साथ यौन और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे तीनों को गुरुवार को दिल्ली की तिहाड़ जेल से लाया गया. उन्हें कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एससी/एसटी अदालत में पेश किया गया. यह घटना तब प्रकाश में आई जब ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ ने बिहार के समाज कल्याण विभाग में एक रिपोर्ट दाखिल की और उसमें आश्रय गृहों में भयानक यौन शोषण के मामलों का विवरण दिया गया.
ठाकुर के राज्य-वित्तपोषित एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह में कथित तौर पर 40 से अधिक नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया गया था. शुरुआत में इस मामले की जांच बिहार पुलिस ने की थी. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट से संबंधित मामले को छोड़कर बाकी सभी मामलों को बिहार से दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था और न्यायाधीश को छह महीने के भीतर मामले की सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था, जिसके बाद अधीनस्थ अदालत ने 20 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे.
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सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी. दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में अपने 3,100 पन्नों के फैसले में ठाकुर को दोषी ठहराया था. इसके अलावा नौ महिलाओं सहित 11 अन्य को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार के अपराध शामिल हैं. मुजफ्फरपुर की एससी/एसटी अदालत द्वारा बरी किए जाने के बाद मधु के वकील प्रिय रंजन ने बताया, "सबूतों के अभाव में अदालत ने तीनों को बरी कर दिया है."
उन्होंने कहा कि इस मामले में कुल चार आरोपी थे. एक आरोपी की मुकदमे के दौरान मौत हो गई थी.
भाषा