मुश्किल में मुसलमान: MP के रायसेन जिले के 200 नट मुसलमानों पर धर्म बचाने का संकट
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2663456

मुश्किल में मुसलमान: MP के रायसेन जिले के 200 नट मुसलमानों पर धर्म बचाने का संकट

Nat Muslims In Raisen MP: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के गैरतगंज तहसील का पापड़ा गाँव पिछले एक हफ्ते से देशभर में सुर्ख़ियों में हैं. यहाँ पीढ़ियों से रहने वाले लगभग 200 नट मुसलमानों का इल्ज़ाम है कि उन्हें धर्मान्तरित हिन्दू बताकर हिन्दू संगठन के लोग, स्थानीय मीडिया के लोग और उनके कुछ ग्रामीण जबरन पूरे गाँव के मुसलमानों को हिन्दू धर्म में घर वापसी कराने की कोशिश कर रहे हैं. पढ़े पूरी रिपोर्ट.    

मुश्किल में मुसलमान: MP के रायसेन जिले के 200 नट मुसलमानों पर धर्म बचाने का संकट

Nat Muslims In Raisen MP:  "अगर हमारे बुज़ुर्ग हिन्दू होते तो मरने के बाद उन्हें जला दिया जाता, लेकिन वो तो दफनाए गए हैं. हमें नमाज़ पढ़नी आती है." खुद के मुसलमान होने का दावा करते हुए एक नौजवान दिन में पांच वक़्त पढ़ी जाने वाली नमाज़ का एक ज़रूरी मंत्र 'सुरह फातिहा' पढ़कर सुना देता है.

"हम पैदाइशी मुसलमान हैं, और मुसलमान ही रहना चाहते हैं, लेकिन वो हमें जबरदस्ती अपने मंदिरों में बुलाते हैं. हम पर हिन्दू बनने के लिए दबाव डालते हैं." एक कच्ची झोपड़ी के सामने अपने गोद में दो बच्चों को संभालते हुए एक महिला, ऐसा कहते हुए थोड़ी हाईपर हो जाती है. मीडिया वालों पर परेशान करने का इल्ज़ाम लगाती है.

fallback

पापड़ा गाँव की नट मुस्लिम महिला 

मुसलमान गरीब है तो क्या उसे नहीं मिलेगी धार्मिक आज़ादी ? 

देश का संविधान और कानून देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म और पेशा चुनने और देश के किसी भी हिस्से में बस जाने की आज़ादी देता है, लेकिन नागरिक अगर गरीब और ऊपर से मुसलमान हो, तो शायद उनकी ये आज़ादी अब कभी भी, और कहीं भी छीनी जा सकती है. उसका धर्म और उसकी सांस्कृतिक पहचान उसके लिए खतरा पैदा कर सकता है. कम से कम मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुछ गरीब मुसलमानों के सामने पैदा हुए हालिया संकट को देखते हुए ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, जहाँ उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लगतार डराया और धमकाया जा रहा है. 

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 50 किमी के फासले पर रायसेन जिला है. यह जिला उत्तर में विदिशा, पश्चिम में सीहोर, दक्षिण में होशंगाबाद, सागर, और दक्षिण पूर्व में नरसिंहपुर जिले से घिरा हुआ है. रायसेन का ऐतिहासिक महत्व वाला किला पूरे भारत में मशहूर है. यहाँ हिन्दू राजाओं से लेकर मुग़ल और शेर शाह सूरी जैसे देशी मुस्लिम शासकों ने भी शासन किया है. वर्तमान समय में मध्य प्रदेश के 4 टर्म के मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान यहाँ से भाजपा के सांसद हैं, और भाजपा के ही प्रभुराम चौधरी यहाँ के विधायक हैं. 

आँखों में खटक रहे गरीब मुसलमान 
रायसेन एक साझी विरासत वाला जिला रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश में अल्ट्रा हिंदुत्व के उभार के बाद अब यहाँ के हिन्दू समाज से मिली- जुली संस्कृति वाले गरीब मुसलमान कुछ लोगों की आँखों में खटक रहे हैं. वो उन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाना चाहते हैं. यानी इस बिना पर उनका घर वापसी कराना चाहते हैं कि उनके पूर्वज कभी हिन्दू थे. 

रायसेन जिले के गैरतगंज तहसील का पापड़ा गाँव पिछले एक हफ्ते से देशभर में सुर्ख़ियों में हैं. मेन स्ट्रीम मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया पर यहाँ कि खबरें वायरल हो रही है, जिसमें कुछ महिलाएं यह इल्ज़ाम लगा रही हैं कि उन्हें जबरन हिन्दू बनाने की कोशिश की जा रही है. उन्हें ऐसा न करने के लिए डराया और धमकाया जा रहा है. विडियो में महिलाएं लोगों से मदद करने की अपील कर रही हैं. वो कह रही हैं कि वो पैदाइशी मुसलमान हैं और मरते दम तक मुसलमान ही रहना चाह रही हैं. उनका इल्ज़ाम है कि हिन्दू संगठन के लोगों के अलावा उनके अपने ही गांव के कुछ लोग और यहाँ तक कि कुछ मीडिया वालों ने भी उनकी ज़िन्दगी हराम कर रखी है. रोज़ कोई न कोई उनसे उनका धर्म और जाति पूछने उनके मोहल्ले और उनके घर चला आता है. वो उनसे कागज़ की डिमांड करते हैं. उनसे इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म स्वीकार करने की बात करते हैं. वो ऐसे सवालों से तंग आ गए हैं. उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है.   
fallback

पापड़ा गाँव में नट मुस्लिम का घर 

गाँव में यादव, गुर्जर और कुर्मी जाति के लोग 
रायसेन जिले के गैरतगंज तहसील के पापड़ा गाँव की मिक्स आबादी है. यहाँ मुसलमानों की नट जाति के लोगों के 20- 25 घर हैं, जिनकी कुल आबादी 200 से 250 के बीच होगी. इस गाँव में यादव, गुर्जर और कुर्मी जाति के लोग भी रहते हैं. मुसलमानों का आरोप है कि बजरंग दल से जुड़े गुर्जर जाति के कुछ लोग उन्हें परेशान करते हैं. वो उन्हें इस्लाम धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म में वापस आने के लिए दबाव डालते हैं. अभी हाल ही में उनके गाँव में कुरआन पढ़ाने के लिए आ रहे एक मौलाना को इन लोगों ने मारपीट कर उसे गाँव में आने से मना कर दिया. गैरतगंज से मौलाना इस गाँव में कुरआन पढ़ाने आते थे.  गाँव में एक मस्जिद बनाने की भी पहल हुई थी, लेकिन उन लोगों ने मस्जिद बनने से रोक दिया. 

सरकारी योजनाओं का मिलता है फायदा 
गाँव के लोगों ने बताया कि वो सालों से इसी गाँव में रहते हैं. ज़्यादातर लोगों के पास कच्चे मकान है. कुछ लोगों के घरों में आधा-अधूरा सरकारी शौचालय भी है.  4- 5 लोगों के पास इंदिरा आवास वाला मकान है. मोहल्ले में 5 लोगों के पास बाइक भी है. घर के अलावा किसी के पास खेती की कोई ज़मीन नहीं है. ज़्यादातर परिवार बकरी पालने का काम करता है. वो बकरियों को पास के ही रायसेन के जंगलों में चराने ले जाते हैं. घर के कुछ सदस्य खेतों में मजदूरी भी करते हैं. उनकी आजीविका का साधन बकरी पालन या मजदूरी से होने वाली आय है. 

गाँव में १० लोगों के घरों में बिजली का सरकारी कनेक्शन भी है. अधिकांश परिवारों में उज्ज्वल योजना का गैस चूल्हा है, लेकिन पैसों के अभाव में उसे सालों से भराया नहीं गया है. महिलाएं जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाती हैं, और उसी से खाना बनाती हैं. सभी नट मुसलमानों के पास राशन का कार्ड है, जिससे उन्हें फ्री में अनाज मिल जाता है. उनके पास आयुष्मान कार्ड भी है. सभी सरकारी दस्तावेजों पर उनके नाम मुसलमान के तौर पर दर्ज हैं. वो लोग अपने नाम के बाद नट लगाते हैं. जैसे- मोमिन नट, इरशाद नट, जैनब नट. मोहल्ले के शेरा नट ने बताया कि कुछ लोग अपने नाम के बाद खान भी लगाते हैं, जैसे शेरा ने अपने नाम में शेरा खान लगा रखा है. उसके बाप का नाम भी मल्लन खान है.  
 

समाज का कोई भी आदमी १० वीं तक नहीं पढ़ पाया
पूरे मुस्लिम नट समाज में अभी तक कोई १०वीं पास नहीं कर पाया है. नजीर नट ने बताया कि गाँव के 4- 5 लड़के ही अभी स्कूल जाते हैं. वो किस क्लास में पढ़ते हैं, उसे नहीं मालूम है, लेकिन उसे अंदाज़ा है कि पास के गाँव के बड़े स्कूल में वो सभी लड़के पढाई करने जाते हैं. जब हम गाँव गए थे तो वो लड़के स्कूल गए हुए थे. पूरे मुस्लिम समाज से सिर्फ एक लड़की जावेद नट की बेटी साहिबा स्कूल जाती है. साहिबा कुराना पढना भी जानती है. पूछने पर उसने कुराना के कुछ अंश पढ़कर सुना दिए. गाँव के दूसरे मोहल्ले में एक आंगनबाड़ी सेंटर भी है, जहाँ इस नट समाज के छोटे बच्चे खेलने और पढ़ाई करने जाते हैं. महिलाओं ने बताया कि वहां उनके बच्चों को पोषाहार भी मिलता है. उनसे कोई भेदभाव नहीं होता है. 

fallback

मुस्लिम मोहल्ले से स्कूल जाने वाली एकमात्र लड़की साहिबा कुरआन पढ़कर खुद के मुस्लिम होने का सबूत देती हुई  

गाँव में पहली बार कोई बनेगा हाफिज 
गाँव में कोई मदरसा नहीं है, इसलिए 10 किमी दूर गैरतगंज से आकर एक मौलान गाँव के 50 - 60 बच्चों को कुरआन और दीनी तालीम देते थे. इस काम के लिए गाँव के ही किसी आदमी ने अपना एक कच्चा मकान दे रखा था. लेकिन अब गाँव में मौलाना का आना बंद हो गया है. इस बात से लोग नाराज़ हैं. शेरा खान का भतीजा अमान खान हाफिज बन रहा है. वो कुरआन का 27 पारह (खंड) हिफ्ज़ (कंटस्थ) कर चुका है. वो नट समाज का पहला ऐसा लड़का होगा, जो हाफिज बनेगा. ऐसा कहते हुए शेरा खान के चेहरे पर एक चमक और संतोष का भाव बिखर गया. हालांकि, गाँव के सभी बच्चे सरकारी स्कूल क्यों नहीं जाते हैं, इस सवाल का शेरा या समाज के बाकी लोगों के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.         

नट समाज का अपना कब्रिस्तान है, लेकिन गाँव में नहीं है कोई मस्जिद 
नट समाज के लोगों के पास अपना कब्रिस्तान है, जहाँ उनके पुरखों की कब्रें हैं. बब्बन नट ने बताया कि गाँव में जीर्ण- शीर्ण अवस्था में एक ईदगाह है, जहाँ ईद और बकरीद की नमाज़ पढ़ी जाती है. गाँव में अभी कोई मस्जिद नहीं है. आपस में चंदा कर एक मस्जिद बनाई जा रही थी. उसके लिए ईंट, सीमेंट और रेत  खरीदकर लाया गया था. लेकिन जब गुर्जर समाज के लोगों को इस बात की खबर मिली तो उनमें से कुछ लोगों ने आकर मस्जिद निर्नाम का काम रोक दिया. नट समाज के कुछ लोग जुमे की नमाज़ अदा करने पड़ोस के आलमपुर गाँव जाते हैं. ये गाँव उनके पापड़ा गाँव से महज 3 किमी के फासले पर हैं, जहाँ मुसलमानों की ठीक-ठाक आबादी है. 

"जान दे देंगे, लेकिन हम अपना दीन नहीं छोड़ेंगे." 
पापड़ा गाँव के लोग बताते हैं कि उन्हें हिन्दू बताये जाने और हिन्दू धर्म में वापसी कराने की कोशिश तब हुई जब गाँव के एक मास्टर ने नट समाज के एक आदमी के सरकारी डाक्यूमेंट्स में उसका कैटेगरी में उसे अनुसूचित जाति लिख दिया. तभी से लोग उसे परेशान करने लगे कि तुम लोग जब हिन्दू हो और थे तो फिर मुसलमानों वाला आचरण क्यों करते हो. यहाँ तक कि उनके टोपी पहनने पर भी गाँव के कुछ लोगों ने आपत्ति दर्ज कर दी. 

क्या गाँव के नट मुसलमान कभी पूजा- पाठ भी करते थे, इस सवाल से नट समाज के लोग इनकार करते हैं. उनका कहना है कि उनके समाज के कुछ लोग नियमित रूप से नमाज पढ़ते हैं. रमजान में रोज़े रखते हैं. उहें याद नहीं कि उनके सात खानदान पहले का कोई आदमी हिन्दू था.

नट मुस्लिम महिला सुल्ताना बी कहती हैं, " पढ़े- लिखें नहीं हैं, लेकिन मुसलमान हैं. हमें तो किसी से दिक्कत नहीं है कि वो क्या हैं, फिर हमारे पीछे लोग क्यों पड़े हैं?" 

गाँव की एक दूसरी महिला कहती है, " हम नट मुसलमान है. हमारा दीन हमें प्रिय है. जान दे देंगे, लेकिन हम अपना दीन नहीं छोड़ेंगे." 

गाँव का एक अन्य लड़का साहिल अपने गाँव से 40 दिन का चिल्ला (धर्म प्रचार करने) लगाने महाराष्ट्र जा चुका है. उसके साथ 5-6 अन्य नौजवान भी साथ में जा चुका है. यानी साहिल खुद मुसलमान है और मुसलमानों को धर्म की राह पर चलने की सीख भी देता है. साहिल ने बताया कि उनके गाँव में लोगों की शादियाँ भी मुसलमानों में होती हैं. उनके गाँव के लोगों की शादी बिहार के दरभंगा, हरियाणा के मेवात, उत्तर प्रदेश के कई जिलों और भोपाल सहित मध्य प्रदेश में होती है. वो सभी प्रैकटीसिंग मुसलमान हैं. 
साहिल ने बताया कि उसके नट समाज के लोग गाँव के हिन्दू समाज के लोगों के साथ मिलजुल कर रहते हैं. वो एक दूसरे के पर्व- तौहारों और सामाजिक आयोजनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं. 

गांव का लगभग एक 7- 8 साल का बच्चा आरिश पूछे जाने पर पहला कलमा पढ़कर सुना देता है. ये वो ही कलमा होता है, जिसे पढ़कर या जिसे दिल से स्वीकार कर कोई मुसलमान बनता या बना रहता है.

अगर इनके पूर्वज हिन्दू तो गाँव के कब्रिस्तानों में कौन दफ्न हैं ? 
रायसेन  के एक स्थानीय मुस्लिम पत्रकार कलीम खान बताते हैं, "षडयंत्र पूर्वक बनाए गए जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नट मुसलमान परिवारों को हिंदू घोषित करने का प्रयास कुछ मीडिया कर्मियों द्वारा किया गया था. इसमें वो लोग शामिल थे, जो विचारों से घोर दक्षिणपंथी हैं, और खुद को पत्रकार बताते हैं. अपना लोकल अखबार या youtube चैनल चलाते हैं.  उनके साथ गांव के कुछ लोग भी शामिल हो गए हैं.
उन लोगों का दावा है कि ये लोग 5 साल पहले ही धर्म बदलकर मुसलमान बने हैं. इसलिए उन्हें घर वापसी कराना चाहते हैं. 
गाँव के शमीम खां पुत्र भुल्लन खां का जन्म 1988 में हुआ था, उसके एक सरकारी दस्तावेव में उसका नाम शमीम खां दर्ज है. अगर वो हिन्दू है या था म तो उसका नाम सिंह या कुमार क्यों नहीं है?"  

कलीम खान आगे बताते हैं,  "नवाबी शासनकाल की यहां पर ईदगाह की शाकिस्ता दीवार और ईदगाह, मजार आज भी मौजूद है, जो इस बात की गवाही दे रही है कि यहां पर कभी समृद्ध मुसलमान भी रहते थे. शासन के रिकॉर्ड में कब्रिस्तान भी दर्ज है. अगर धर्म परिवर्तन की थ्योरी मान भी लेते हैं, और ये सब पहले हिन्दू थे तो फिर यहां कब्रिस्तान में किस की लाशें दफन है? ईदगाह किसके लिए बनाई गई थी?" 

मामला सुर्ख़ियों में आने के बाद मानवाधिकार आयोग ने इसपर संज्ञान लिया है और कलेक्टर को इसपर अपनी रिपोर्ट देने को कहा है. गैरतगंज की एसडीएम पल्लवी वैध ने ग्राम पापड़ा पहुंचकर सभी नट मुसलमानों के बयान दर्ज किए हैं. उनसे सरकारी दस्तावेजों को कॉपी भी ली है. गाँव के नट समाज के लोगों ने स्थानीय थाने में कुछ मीडिया कर्मियों के खिलाफ शिकायत भी की थी.  इस मामले में अबतक क्या कार्रवाई हुई, इसे जाने के लिए रायसेन के कलेक्टर अरुण कुमार विश्वकर्मा से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन वो उपलब्ध नहीं हो सके.    

सच्चर कमिटी की रिपोर्ट में इन्हीं मुसलमानों का था जिक्र 
मध्य प्रदेश में नट मुसलमानों को परेशान करने के मामले में भारत में दलित मुसलमानों पर शोध करने वाले और इस विषय पर कई पुस्तकों के लेखक डॉक्टर अय्यूब राईन कहते हैं, " भारत का ज़्यादातर मुसलमान कनवर्टेड मुसलमान है, जिनके पूर्वज कभी हिन्दू थे. हिन्दू की ऊंची जातियों से कनवर्टेड लोग ऊंची जाती के मुसलमान हो गए, लेकिन पिछड़े और दलित हिन्दू से कनवर्टेड हिन्दुओं का धर्म तो बदल गया लेकिन उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति सदियों बाद भी नहीं बदली. उनकी आजीविका का साधन, खान-पान, पहनावा और रहन-सहन आज भी दलित हिन्दुओं जैसा ही है. इसलिए उन्हें हिन्दू संगठन टारगेट करते हैं." 

मुस्लिम नेतृत्व और सरकार किसी के अजेंडे में नहीं ऐसे मुसलमान 
डॉक्टर अय्यूब राईन कहते हैं, " सच्चर कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत मुसलमानों की अधिकाँश आबादी दलितों से भी बदतर हालत में अपना जीवन यापन कर रही है. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति दलितों से भी नीचे है, वो मुसलमान यही लोग है. सरकार मुसलमानों को दलित मानकर SC का दर्ज़ा नहीं देती है. उन्हें सिर्फ OBC का दर्ज़ा देती है, लेकिन मुसलमानों की पिछड़ी आबादी जो अपेक्षाकृत सामाजिक और आर्थिक रूप से अब समृद्ध हो रही है, वो लोग सरकारी आरक्षण और सुविधाओं का लाभ उठा लेते हैं, वो लाभ इन वर्गों यानी दलित मुसलमानों तक नहीं पहुँच पाता है. उच्च वर्ग के मुसलमानों, नेताओं या धार्मिक संगठनों में भी इस तरह के मुसलमानों के उत्थान को लेकर न कोई चिंता है, न कोई योजना है." 

नट हिन्दू समाज की घुमंतू जाति होती है, जो हिन्दू नट मुसलमान हुए उनकी जाति और व्यवसाय नहीं बदली. जैसे मुसलमानों में पटेल, पंडित, भूमिहार, राजपूत होते हैं, वैसे ही हिन्दू जातियों की तरह बढई, धोबी, हलालखोर, कलार, नट और बख्खो भी होते हैं. नट और बख्खो घुमंतू जातियां होती है. इसलिए भी अक्सर उन्हें बांग्लादेशी कहकर भी निशाना बनाया जाता है.     

 मुस्लिम वसीम रिज़वी से हिन्दू बने जितेन्द्र त्यागी ने हाल ही में प्रयागराज कुम्भ में मुसलमान से हिन्दू बनने वाले लोगों को मासिक 3 हज़ार रुपया पेशन देने का ऐलान किया था. दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्त्ता नदीम सैफी कहते हैं, " मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के उभार होने के बाद धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून होने के बावजूद हिंदूवादी संगठन के लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर रहने वाले ऐसे मुसलमानों को लगातार निशाना बना रहे हैं. वो उन्हें प्रलोभन देकर घर वापसी करा रहे हैं, लेकिन प्रशासन ऐसे मामलों से अपनी नज़र फेर लेता है, जबकि मुसलमानों के अंतरधार्मिक शादियों को लव जिहाद और धर्मांतरण बताकर जेल में डाल देता है. इसके लिए हाशिये पर पड़े समाज के अन्दर उलेमा और मुस्लिम सिविल सोसाइटी के लोगों को काम करना होगा.   

 मुस्लिम माइनॉरिटी की ऐसी ही खबरों के लिए विजिट करें https://zeenews.india.com/hindi/zeesalaam

Trending news