नई दिल्ली: Trump Putin Relation: वैश्विक राजनीति बीते दो महीने में पूरी तरह बदल गई है. दोस्त दुश्मन बनते दिख रहे हैं और दुश्मन दोस्त. ऐसे में वह चिर-परिचित कहावत याद आती है, जिसमें कहा गया है कि राजनीति में ना तो स्थायी दोस्त होते हैं, ना ही स्थायी दुश्मन. यूक्रेन के साथ खड़े रहने वाले अमेरिका ने स्टैंड बदल लिया है. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका का रुझान रूस की ओर हो गया है. बीते 70 सालों की दुश्मनी भुलाकर दोनों देश एक दूसरे के करीब आ रहे हैं.
रूस-अमेरिका ने दुनिया को धड़ों में बांटा था
रूस और अमेरिकी की दुश्मनी का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा था. शीत युद्ध के दौरान रूस (तब सोवियत संघ) और अमेरिका के बीच वैचारिक टकराव हुआ. पूंजीवाद बनाम साम्यवाद के मतभेद ने दुनिया को दो खेमों में बांट दिया. अमेरिका ने नाटो (NATO) का गठन किया, सोवियत संघ ने वारसा संधि बनाई. तब जो देश अमेरिका के साथ खड़े थे, वे रूस के दुश्मन हो गए. रूस के साथ खड़े रहने वाले देशों ने अमेरिका की मुखालफत ली. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह भी अमेरिका और इसके द्वारा बना गया NATO ही है.
ट्रंप-पुतिन की दोस्ती का असर पड़ना भी तय
अमेरिका और रूस के प्रमुखों ने 7 दशक पुरानी दुश्मनी भुलाने का मानस बना लिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से नजदीकियां बढ़ाई हैं. दोनों राष्ट्र प्रमुखों की दोस्ती का असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है. चीन और भारत भी इससे अछूते नहीं हैं. चीन के लिए ट्रंप-पुतिन की दोस्ती बड़ा झटका हो सकती है, जबकि भारत के लिए सकारात्मक संभावनाएं दिख रही हैं.
ट्रंप-पुतिन की दोस्ती चीन के लिए झटका क्यों?
चीन के लिए ट्रंप-पुतिन की दोस्ती चुनौती बन सकती है. ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में चीन पर ऊंचे टैरिफ लगाए थे. अब भी उनकी नीति चीन के खिलाफ सख्त रह सकती है. रूस चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक और सामरिक साझेदारों में से एक है. चीन रूस से बड़ी मात्रा में तेल, गैस और अन्य संसाधन आयात करता है. यदि पुतिन अमेरिका से संबंध सुधारते हैं, तो चीन को रूस से मिलने वाला समर्थन कमजोर पड़ सकता है. दोनों महाशक्तियां मिलकर चीन को दक्षिण चीन सागर और ताइवान जैसे मुद्दों पर घेर सकती हैं. हालांकि, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना है कि रूस-चीन के संबंधों में कोई तीसरा नहीं आ सकता.
भारत के लिए ट्रंप-पुतिन की दोस्ती कैसे फायदेमंद?
अमेरिका इस बात को लेकर सख्त रहा है कि भारत के रूस के साथ मजबूत संबंध हैं. अमेरिका ने बीते कुछ सालों में भारत से रूस के साथ तेल आयात और रक्षा सौदों को सीमित करने की बात कही थी. अब दोनों देशों के रिश्ते सहज होने पर ये दबाव कम हो सकता है. भारत रूस से बड़े पैमाने पर हथियार और सैन्य उपकरण खरीदता है, जैसे S-400 मिसाइल सिस्टम.अमेरिका के साथ भी भारत की रक्षा साझेदारी बढ़ रही है, जैसे- क्वाड और संयुक्त सैन्य अभ्यास. ट्रंप और पुतिन की दोस्ती से दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा, भारत को इन दोनों से तकनीकी और रक्षा सहयोग में कोई बाधा नहीं आएगी. अमेरिका और रूस, दोनों चीन के खिलाफ एकजुट होते हैं, तो भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने का बड़ा अवसर मिलेगा. वैश्विक कंपनियां चीन से बाहर निकलकर भारत की ओर बढ़ सकती हैं.
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