Rape Cases: कोलकाता रेप केस में ये जानकारी सामने आई कि आरोपी ने घटना को अंजाम देने से पहले पोर्नोग्राफीक कंटेंट कंज्यूम किया था. अक्सर ये सवाल उठता है कि क्या पोर्नोग्राफीक कंटेंट की वजह से रेप केस की घटनाओं को बढ़ावा मिलता है? आइए, जानते हैं कि रिसर्च इसके बारे में क्या कहती हैं?
Rape Cases: पोर्नोग्राफीक कंटेंट को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं. ऐसी आम धारणा बन गई है कि पोर्नोग्राफीक कंटेंट कंज्यूम करने के चलते यौन अपराधों में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन ये सच है या नहीं? आइए, जानते हैं.
भारत में इन दिनों लगातार रेप की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसी बीच ये खबर आई है कि कोलकाता में हुई रेप की घटना से पहले आरोपी ने पॉर्न देखा. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इसी के कारण रेप की घटना हुई है. यह पहली बार नहीं है जब पॉर्न को रेप के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है. लेकिन क्या इस बात में सच्चाई है कि पॉर्न देखने के कारण रेप की घटनाएं होती हैं? आइए, जानते हैं कि रिसर्च इसके बारे में क्या कहती है?
BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1970 में कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बर्ल कचिंस्की ने एक रिसर्च की. उन्होंने स्वीडन, जर्मनी और डेनमार्क में पॉर्न पर बैन हटने के बाद यौन अपराध पर रिसर्च की. उन्होंने पाया कि यौन अपराध की बढ़ोतरी और पॉर्न में किसी तरह का कोई संबंध नहीं है.
कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के समाज विज्ञानी नील मलेमथ ने भी पॉर्न और यौन अपराधों पर कई रिसर्च की हैं. उन्होंने BBC रेडियो के एक प्रोग्राम में बताया था कि पॉर्न उन लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, जो पहले से यौन रूप से आक्रामक हैं. मलेमथ ने 300 पुरुषों पर एक रिसर्च की. उन्होंने पाया कि जिन लोगों में पहले से यौन आक्रमकता थी और वे यौन आक्रामकता से जुड़े पॉर्न वीडियो देखते हैं तो मुमकिन है कि वे यौन रूप से अधिक आक्रामक हों.
अमेरिका के मशहूर पत्रकार माइकल कासलमैन 13 नॉन फिक्शन किताबें लिख चुके हैं. उन्होंने अपने एक आर्टिकल में पॉर्न और यौन अपराधों का जिक्र किया. कासलमैन ने दावा किया कि पॉर्न के कारण सेक्शुअल हिंसा नहीं बढ़ी. उन्होंने 90 के दशक के दौर का जिक्र करते हुए कहा कि तब इंटरनेट और पॉर्न तक लोगों की पहुंच काफी कम थी. इसके बाद इंटरनेट आया. यदि पॉर्न के कारण रेप की घटनाएं बढ़ती तो 1999 के बाद से रेप और सेक्शुअल असॉल्ट के मामलों में बढ़ोतरी होती, लेकिन ऐसा नहीं है. उन्होंने जस्टिस डिपार्टमेंट के अथॉरोटेटिव नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे का हवाला भी दिया. इसमें बताया गया कि 1995 के बाद से यौन हिंसा के मामलों में 44% तक की कमी आई है.
इसे चेक रिपब्लिक (Czech) के उदाहरण से भी समझिए.यहां पॉर्न लीगल है. अमेरिका और चेक के कुछ रिसर्चर्स ने 17 साल पहले का डेटा इकट्ठा किया, जब पॉर्न लीगल नहीं हुआ करता था. फिर इसकी 18 साल बाद के डेटा से तुलना की. इसमें पाया गया कि रेप के मामले सालाना 800 से 500 पर आ गए. पॉर्न लीगल होने के बाद चाइल्ड सेक्स अब्यूज जैसे अपराधों में भी कमी आई. पहले ये 2000 प्रति साल थे, फिर 1000 प्रति साल हो गए.