नई दिल्ली: MSP Demand Kisan Andolan: किसान आंदोलन का आज चौथा दिन है. सरकार और किसानों के बीच तीन दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन हर बार सुई MSP पर आकर अटक जाती है. किसान लंबे समय से MSP का कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इस मांग को मानने के लिए कतई राजी नहीं है. केंद्र की मोदी सरकार का तो ये भी दावा है कि उनके शासन में MSP दोगुनी हो गई है, फिर भी MSP पर कानून बनाने से सरकार को क्या ऐतराज है? आइए, जानते हैं कि MSP पर कानून बनाने से सरकार पीछे क्यों हट रही है.
MSP क्या है?
देश में करीब 23 फसलें ऐसी हैं जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सरकार तय करती है. यदि बाजार में इन फसलों के दाम गिर भी जाएं, तो सरकार किसानों से तय दामों पर ही फसल खरीदती है. कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर सरकार MSP तय करती है.
किन फसलों पर है MSP?
अनाज: गेहूं, धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, जौ और रागी
दाल: चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर
तिलहन: मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, निगरसीड, तिल,
कमर्शियल फसलें: कपास, खोपरा, कच्चा जूट, गन्ना,
किसान क्यों मांग रहे कानून?
दरअसल, MSP फिलहाल एक नीति है. इसलिए सरकार जब चाहे MSP को घटा सकती है, चाहे तो इसे हटा भी सकती है. यही कारण है कि किसान MSP पर कानून की मांग कर रहे हैं. ताकि ये बात हमेशा के लिए पक्की हो जाए कि उनकी फसलों की खरीदी MSP पर होगी.
MSP पर किसानों को एक और समस्या
सरकार का दावा है कि हमने बीते 10 सालों में MSP को दोगुना कर दिया है. जैसे - 2014-15 में चावल की खरीदी 1345 रुपये प्रति क्विंटल पर होती थी, अब यह 2023-24 में 2203 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. इसी तरह बाजरा 1250 रुपये से 2500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. हालांकि, किसानों का कहना है कि इन सबका MSP भले बढ़ा है. लेकिन ये स्वामीनाथन कमेटी द्वारा बताए गए आधार के हिसाब से नहीं बढ़ा.
स्वामीनाथन ने MSP तय करने के क्या आधार बताए?
साल 2004 में स्वामीनाथन कमेटी का गठन हुआ. इस कमेटी ने MSP तय करने के तीन आधार सुझाए थे.
1. A2: इस मॉडल के तहत MSP तय करते वक्त इसका ध्यान भी रखना चाहिए कि कौन-से बीज या कीटनाशक का इस्तेमाल हुआ. इसे आधार बनाने के बाद कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन तय की जानी चाहिए. फिर ही MSP का रेट निकालना चाहिए.
2. A2+ FL: इस मॉडल में A2 आधार के अलावा फैमिली लेबर की कॉस्ट को भी जोड़ा जाना चाहिए.
3. C2: इसका मतलब Comprehensive Cost है. यदि फसल बोने से पहले जमीन खरीदी गई है तो उसका पैसा जोड़ा जाए. खाद, सिंचाई में लगे पैसों को भी जोड़ा जाए, इसके बाद ही MSP तय होनी चाहिए.
स्वामीनाथन के सुझाव से ये होनी चाहिए MSP
यदि स्वामीनाथन के सुझावों के आधार पर MSP तय हो तो गेहूं की कीमत 2,478 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए. जबकि अब सरकार ने गेहूं के लिए 2,275 रुपये MSP तय कर रखी है. इसी तरह सूरजमुखी पर सरकार 5,800 रुपये देती है, जबकि स्वामीनाथन के सुझावों के आधार पर इसकी कीमत 8,121 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए.
सरकार क्यों नहीं बना रही कानून?
सरकार सिर्फ वो फसलें भी खरीदें, जिनका मंडी में भाव MSP से कम है तो वित्तीय वर्ष 2023 के लिए लगभग 6 लाख करोड़ रुपये का भार आ जाएगा. MSP पर कानून बनाने से बड़े उद्योगपतियों को नुकसान होगा. वो दाम तय कर किसानों की फसलें खरीदते हैं. यदि कानून बन जाएगा तो वो बेस प्राइस से कम में खरीदी नहीं कर पाएंगे. इसलिए उन्हें कम मुनाफा होगा.
ये रास्ता अपना सकती है सरकार
ऐसा दावा किया जा रहा है कि सरकार MSP को कानून बना दे और स्वामीनाथन के सुझावों को मानते हुए MSP दे तो सरकारी खजाने पर 10 लाख करोड़ का भार पड़ेगा. लेकिन यह सरासर गलत है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार को गन्ने के पैसे नहीं देने होते, ये शुगर मिल्स देती हैं. न ही सरकार को उत्पादन की गई पूरी फसल खरीदनी होती है, क्योंकि किसान कुछ अपने लिए भी रखता है. ऐसे में कुल खर्च 2.7 लाख करोड़ ही बैठेगा. रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार एक तिहाई फसल भी खरीद ले तो सप्लाई-डिमांड ठीक रहेगी, बाजार का दाम भी बढ़ेगा और किसान बची हुई फसल बाजार में भी बेच सकता है. लिहाजा, कुल मिलाकर सरकार पर केवल 1.5 लाख करोड़ का भार पड़ेगा.
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