नई दिल्ली: Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, टिकटधारी नेताओं की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं. दरअसल, 200 में से 50 से अधिक सीटों पर बागियों ने टिकटधारी प्रत्याशियों की नींद उड़ा रखी है. 9 नवंबर नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख है. इसके बाद बगावत को दूर करना मुश्किल हो जाएगा. बागियों की बड़ी संख्या कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. भाजपा के 25 से ज्यादा बागी मैदान में हैं.
इन बागियों पर सबकी नजर
राजस्थान भाजपा के कई दिग्गज नेता इस बार टिकट न मिलने पर पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे हैं. इनमें कोटा से भवानी सिंह राजावत, डीडवाना से पूर्व मंत्री यूनुस खान, शाहपुरा से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल,शिव से पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रविंद्र सिंह भाटी, झोटवाड़ा से पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत पर बकी नजरें टिकी हुई हैं. इन सबका अपने -अपने इलाकों में पर्सलन वोट बैंक है, जो भाजपा के प्रत्याशियों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है.
वसुंधरा खेमे के नेताओं की संख्या ज्यादा
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमे का टिकटों में दबदबा रहा है. लेकिन फिर भी कई नेताओं को टिकट नहीं मिल पाया है. इनमें पिलानी से पूर्व प्रधान कैलाश मेघवाल, झुंझुनूं से भाजपा जिला उपाध्यक्ष राजेंद्र भांबू, बामनवास से प्रदेश किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री रामावतार, चित्तौड़गढ़ से चंद्रभान आक्या, खंडेला से बंसीधर बाजिया, सुमेरपुर (पाली) से मदन राठौड़ ने निर्दलीय ताल ठोक दी है.
क्या है 'गहलोत फॉर्मूला'?
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट का नाम मुख्यमंत्री के लिए करीब-करीब तय था. लेकिन नतीजों ने सचिन के सपने पर पानी फेर दिया. कांग्रेस 100 के आंकड़े पर आकर अटक गई. लिहाजा, पार्टी ने निर्दलीय जीतकर आए 13 विधायकों से संपर्क साधा. इनमें से ज्यादातर अशोक गहलोत के करीबी थे. नतीजतन, गहलोत बागियों के समर्थन के साथ सीएम बन गए. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वसुंधरा का राजयोग तभी शुरू हो सकता है जब भाजपा 100 के आंकड़े के आसपास रह जाए. इसके बाद वे निर्दलीय विधायकों के दम पर सीएम पद पाने के लिए पार्टी पर दबाव बना सकती हैं.
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