Rahat Indori Shayari: शायर राहत इंदौर के शेर ऐसे जैसे कोई दवा, इन शेरों ने तो उड़ा दिए धुआं
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो, धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो, ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे, नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए, मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
सूरज सितारे चाँद मिरे साथ में रहे, जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो, दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते