कोई इतना प्यारा कैसे हो सकता है, फिर सारे का सारा कैसे हो सकता है
ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूं निकल नहीं रहा, कि उस का भी मिरी तरह से जी संभल नहीं रहा
आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं, लेकिन ऐसा तो न कहिए कि वफ़ा कुछ भी नहीं
तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना, आम सा फ़न तो कोई है नहीं तोहफ़ा देना
मैं चाहता हूं कि दिल में तिरा ख़याल न हो, अजब नहीं कि मिरी ज़िंदगी वबाल न हो
एक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जाती, देख भी लूं तो मुसलसल नहीं देखी जाती
तो क्या इक हमारे लिए ही मोहब्बत नया तजरबा है, जिसे पोछिए वो कहेगा कि जी हां बड़ा तजरबा है
हज़ार सहरा थे रस्ते में यार क्या करता, जो चल पड़ा था तो फ़िक्र-ए-ग़ुबार क्या करता
इधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहीं, उधर वो हुस्न कि आंखों पे एतिबार नहीं