Champa shashti 2023: कब और क्यों मनाई जाती है चम्पा षष्ठी, जानिए महत्व और विष्णु और नारद जी की पूरी कथा
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Champa shashti 2023: कब और क्यों मनाई जाती है चम्पा षष्ठी, जानिए महत्व और विष्णु और नारद जी की पूरी कथा

Champa shashti: सांसारिक माया मोह से छुटकारा पाने की दृष्टि से इस व्रत का बहुत ही अधिक महत्व है. इस दिन स्नान आदि के बाद विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा कर जरूरतमंद ब्राह्मण को ऊनी वस्त्रों सहित दक्षिणा का दान करना चाहिए. चलिए पढ़ते हैं इस व्रत की पूरी कथा.

Champa shashti 2023: कब और क्यों मनाई जाती है चम्पा षष्ठी, जानिए महत्व और विष्णु और नारद जी की पूरी कथा

Champa shashti story in hindi: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को चम्पा षष्ठी या चम्पा छठ कहा जाता है. इस वर्ष यह 18 फरवरी सोमवार को होगी. इसी दिन भगवान विष्णु ने नारद जी के मोह का भंग कर उनका उद्धार किया था. सांसारिक माया मोह से छुटकारा पाने की दृष्टि से इस व्रत का बहुत ही अधिक महत्व है. इस दिन स्नान आदि के बाद विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा कर जरूरतमंद ब्राह्मण को ऊनी वस्त्रों सहित दक्षिणा का दान करना चाहिए. 

चम्पा षष्ठी की कथा
एक बार महर्षि नारद ने भगवान शंकर के सामने अपने त्याग, तप और संयम के बारे में बताया. इस पर महादेव ने उनसे कहा कि यह बात अन्य किसी से कहना. वहां से निकल कर नारद जी सीधे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे भी उसी बात का बखान किया. विष्णु जी को समझने में देर नहीं लगी कि नारद जी को अभिमान हो गया है और उन्हें इससे दूर करने का उपाय किया. विष्णु लोक से लौटते समय नारद जी को एक समृद्ध राज्य मिला जहां का राजा देवता के समान था. उसकी सुंदर पुत्री को देख नारद जी में भी उसके प्रति आसक्ति आ गयी. उनके मन में उसी से विवाह की लालसा जग गयी लेकिन नारद जी तो संन्यासी थे और ऐसे व्यक्ति से राजकुमारी भला क्यों विवाह करेगी, ऐसा विचार आते ही वह विष्णु जी के पास पहुंचे और उनको पूरी बात बताते हुए आग्रह किया कि वह उन्हें अपना रूप प्रदान करें. 

फिर स्वयंवर में जब कन्या ने किसी अन्य के गले में माला डाल दी तो नारद जी क्रोधित हो गए, वह इसका कारण नहीं समझ पाए कि सबको मोहित करने वाले विष्णु रूप को कन्या ने क्यों ठुकरा दिया. लोगों के कहने पर नारद जी ने शीशे में अपना चेहरा देखा जो बंदर के समान था. इस पर क्रोध में नारद जी ने विष्णु जी को श्राप दिया कि जिस रूप को देकर आपने मुझे दुखी किया है, आपदा पड़ने पर यही रूप आपकी सहायता करेगा. स्वयंवर का यह आयोजन मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुआ था. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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