Dhar News: मध्य प्रदेश के धार जिले के धरमपुरी में स्थित बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर एक पवित्र स्थान है, जहां भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है. हर साल महाशिवरात्रि पर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं. मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के साथ ही माता पार्वती, श्री गणेश और विशाल नंदी की मूर्तियां भी स्थापित हैं. इस मंदिर से राजा रंतिदेव की कहानी जुड़ी हुई है, जिन्होंने इस द्वीप पर राजसूर्य यज्ञ किया था. यहां प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम को आरती की जाती है.
प्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली पवित्र नदी मां नर्मदा के मध्य स्थित एक विशाल द्वीप पर स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव विराजमान हैं. इस टापू को प्रदेश में "बेंट" के नाम से जाना जाता है. यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने आते हैं.
यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और भोले बाबा का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए अपने परिवार के साथ भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. टापू के पश्चिमी तट पर भोलेनाथ का विशाल तीन मंजिला प्राचीन मंदिर बना हुआ है.
मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग गहरे काले पत्थर से बना है. इसे किसी मनुष्य ने स्थापित नहीं किया है, बल्कि यह स्वयंभू है. मंदिर में माता पार्वती, ऋद्धि-सिद्धि के साथ श्री गणेश और एक विशाल नंदी विराजमान हैं. मुख्य मंदिर के चारों ओर पत्थर से बने छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें महर्षि दधीचि समेत विभिन्न महंतों की समाधियां हैं.
महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है. जागीरदार भव्य शाही जुलूस के रूप में शहर का भ्रमण करने निकलते हैं. जिन्हें पुलिस बल द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है.
पंडित प्रशांत शर्मा ने बताया कि त्रेता युग में भगवान राम के पूर्वज राजा रंतिदेव ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए इस टापू (बेंट) पर राजसूर्य यज्ञ किया था. इस दौरान महाबाहु और सुबाहु नाम के राक्षस यज्ञ में विघ्न डाल रहे थे. तब राजा ने मंत्रों की शक्ति से दोनों राक्षसों का नाश कर दिया. जिसके बाद यज्ञ संपन्न हुआ. राजा को भगवान शिव का इष्ट था, इसलिए उन्होंने भगवान शिव का आह्वान किया. जिस पर भगवान यज्ञ कुंड से प्रकट हुए और राजा को आशीर्वाद दिया. राजा के आग्रह पर वे लिंग रूप में यहां विराजमान हुए.
यज्ञ की समिधा में बेल (बिल्व) और आम के फल व पत्ते का प्रयोग किया गया था जिसके कारण भगवान का नाम "बिल्वामृतेश्वर महादेव" पड़ा. मंदिर में प्रतिदिन सुबह, दोपहर व शाम को आरती की जाती है तथा दोपहर में भगवान को भोग लगाया जाता है.
वर्ष में केवल एक बार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि 12 बजे शिवलिंग पर आठ सौ वर्ष पुरानी चांदी की मूर्ति रखी जाती है और भव्य आरती की जाती है जिसे दिव्य दर्शन के नाम से जाना जाता है.
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