Justice Shekhar Kumar Yadav News: विपक्षी गठबंधन INDIA ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज, जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू कर दी है.
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Impeachment Of Justice Shekhar Yadav: विपक्षी दलों का INDIA गठबंधन इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है. कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने बुधवार को कहा कि संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नोटिस दिया जाएगा. अब तक राज्यसभा के 30 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर लिए जा चुके हैं. प्रस्ताव से जुड़ा नोटिस 100 लोकसभा सदस्यों या 50 राज्यसभा सदस्यों द्वारा पेश किया जाना चाहिए. हालांकि, विपक्ष के पास दोनों ही सदनों में संख्या-बल नहीं है. ऊपर से इतिहास भी विपक्षी दलों के साथ नहीं. स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक एक भी जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है. ऐसे में जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव का क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी.
जस्टिस यादव ने रविवार को इलाहाबाद HC में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए विवादित टिप्पणी की थी. उनके बयान का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया. उसके बाद, राज्यसभा सदस्य और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया जाएगा. उन्होंने मंगलवार को कहा था, 'कोई भी जज इस तरह का बयान देता है तो वह अपने पद की शपथ का उल्लंघन करता है. अगर वह पद की शपथ का उल्लंघन कर रहा है, तो उसे उस कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है.'
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महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया क्या है?
विपक्ष के नोटिस में, संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और अनुच्छेद 124 (5) के साथ न्यायाधीश (जांच) अधिनियम की धारा 3 (1) (बी) के तहत, जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है. न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, किसी जज के खिलाफ शिकायत अगर लोकसभा में पेश की जाती है तो प्रस्ताव पर कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए. अगर राज्यसभा में प्रस्ताव पेश किया जाता है तो नोटिस पर न्यूनतम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए.
सांसदों के नोटिस जमा करने के बाद, सदन के पीठासीन अधिकारी उस प्रस्ताव को मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं. अगर प्रस्ताव को स्वीकार किया गया तो दो जजों और एक न्यायविद को मिलाकर तीन लोगों की जांच कमेटी बनाई जाती है. यह कमेटी शिकायत की जांच करती है और यह तय करती है कि मामला महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने लायक है या नहीं.
अगर शिकायत किसी हाई हाई के जज के खिलाफ है, जैसा कि इस मामले में है, तो कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल होते हैं. अगर शिकायत SC के किसी वर्तमान जज के खिलाफ है तो कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के दो जज शामिल किए जाते हैं.
अगर यह कमेटी पाती है कि संबंधित जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है तो उसे दोनों सदनों के सामने रखा जाता है. प्रस्ताव को दोनों सदनों के अनुमोदन की जरूरत होती है. संविधान का अनुच्छेद 124 (4) कहता है कि महाभियोग के प्रस्ताव को 'उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा तथा सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए.' दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति संबंधित जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं.
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जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का इतिहास
स्वतंत्र भारत की न्यायपालिका के इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है जब जजों को महाभियोग के जरिए हटाने की कोशिश की गई, लेकिन एक भी प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई.
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, वी. रामास्वामी जे. पहले जज थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी. 1991 में, महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया था, लेकिन जरूरी दो-तिहाई बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा.
- कलकत्ता हाई कोर्ट के सौमित्र सेन जे. के खिलाफ राज्यसभा ने 2011 में महाभियोग प्रस्ताव पारित किया था. वह पहले जज थे जिन पर कदाचार के लिए उच्च सदन द्वारा महाभियोग लगाया गया था. लोकसभा में वोटिंग होने से पहले ही जज ने इस्तीफा दे दिया था.
- 2011 में ही, सिक्किम HC के जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ कदाचार के आरोप में शुरू की गई महाभियोग प्रक्रिया जांच समिति के गठन तक गई थी. हालांकि, जस्टिस दिनाकरन के इस्तीफे के बाद जांच समिति की निष्पक्षता में विश्वास और भरोसे की कमी के आधार पर उन्हें हटाने की प्रक्रिया रोक दी गई.
- 2015 में, राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला जे. के खिलाफ उनके 'आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी' के लिए महाभियोग नोटिस पेश किया.
- 2015 में ही, मध्य प्रदेश HC के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी. हालांकि, राज्यसभा द्वारा गठित जांच समिति ने आरोपों को निराधार पाते हुए जज को क्लीन चिट दे दी.
- 2017 में, राज्यसभा के सांसदों ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाई कोर्ट के सीवी नागार्जुन रेड्डी जे. के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया.
- मार्च 2018 में, विपक्षी दलों ने तत्कालीन चीफ जस्टिस (CJI) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे.
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जस्टिस शेखर कुमार यादव का क्या होगा?
लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में विपक्ष के पास महाभियोग प्रस्ताव पारित कराने लायक सदस्य नहीं हैं. बहुमत सत्ताधारी एनडीए के पास है, ऐसे में अगर जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव आता भी है तो उसके लोकसभा या राज्यसभा में पारित होने की संभावना नहीं है.